अशोक की धम्म नीति एवं मानवीय मूल्य

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अशोक का प्रारम्भिक जीवन

     बिन्दुसार की म्त्यु के पश्चात उसका पुत्र अशोक राजा बना जो विश्व के महानतम् सम्राटों में से एक था। 269 ईण्पूण् में वह सिंहासन पर आसीन हुआ। पुराणों में उसका नाम अशोक वर्धन हुआ। उसके अभिलेखों में उसे देवानांपिय तथा पियदस्सी कहा गया है। मास्की शिलालेख में उसका नाम केवल अशोक मिलता है। सम्भवतः प्रियदर्शी उसकी उपाधि थी। प्रारम्भ में अशोक ब्राह्मण धर्म का पालक तथा शिव का उपासक था। कलिंग युद्ध इसके शासनकाल की महान घटना थी। कलिंग युद्ध मे भीषण नरसंहार देखकर अशोक द्रवित हो उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि वह अब कभी युद्ध नहीं करेगाए उसने ब्राह्मण धर्म के स्थान पर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया इसके पश्चात् उसने जीवनपर्यन्त 232 ईण् पूण् तक शांतिपूर्वक शासन किया। बौद्ध धर्म का प्रसार प्रसार किया। लोक कल्याण के लिए उसने भेरी घोष के स्थान पर धम्म घोष की नीति को अपनाया!

धम्म नीति अर्थ स्वरूप एवं उद्वेश्य

     भारतीय इतिहास में अशोक के अभिलेखों का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अभिलेखों द्वारा अशोक के शासन काल की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। अशोक के चैदह शिलालेखों में तेरहवां शिलालेख सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा अशोक के हृदय परिवर्तन का उल्लेख प्राप्त होता है। धम्म प्राकृत भाषा का शब्द है जिसका हिन्दी में अर्थ होता है। ष्ष्धर्मष्ष् यद्यपि अशोक का व्यक्तिगत धर्म बौद्ध धर्म थाए लेकिन उसने अपने शिलालेखों और अभिलेखों में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को न लिखवा करए चारित्रिक एवं नैतिक शिक्षाओं का प्रचार किया। ये नैतिक शिक्षाएं ही संकलित रूप में ष्ष्अशोक का धम्मष्ष् कहलाई। अशोक का धम्म न तो एक नया धर्म था और न ही एक नया राजनैतिक दर्शन। यह जीवन की एक पद्वति तथा लोगो द्वारा व्यवहार मे लाई जाने वाली आचार सहिंता एवं सिद्वांतो का एक समन्वय था। इसका विषय व्यापक एवं मानवीय था। अशोक द्वारा इसके प्रचार एवं प्रसार का किसी भी वर्ग द्वारा विरोध नही किया गया।

अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए अशोक ने जिन आचारो की संहिता प्रस्तुत की उसे अभिलेखो में ष्धम्मष् कहा गया है। अशोक द्वारा प्रसारित ष्धम्मष् के विषय मे विद्वानों ने भिन्न.भिन्न प्र्रकार के मत प्रकट किये हैं। विन्सेंट स्मिथ के अनुसार ष्धम्मष् का तात्पर्य उन सभी सिद्वांतो और नियमों से है जो सभी धर्म व सम्प्रदाय को मान्य होते हुए भी किसी एक विशेष धार्मिक सम्प्रदाय से सम्बंधित नही थे। राधाकुमुद मुखर्जी ने इसे एक मानव धर्म माना है। भंडारकर के अनुसार.ष्अशोक के धम्म का प्रेरक तत्व और स्त्रोत बौद्ध धर्म था ।ष् ष्हैमचंद्र रायचैधरी के अनुसार अशोक का धम्म सभी धर्मो का सार था। तेरहवें शिलालेख में अशोक ने अपने धम्म को समस्त सार देते हुए लिखा है कि समस्त जीवधारी अंिहंसा के पात्र हैं अशोक के धम्म में दो प्रकार के तत्व व्यावहािकर या निषेधात्मक सम्मिलित थे।

धम्म नीति अर्थ स्वरूप एवं उद्वेश्य

     1) व्यावाहारिक तत्व

⇨माता पिता एवं बड़ों का आदर करना।
⇨छोटों के साथ उचित व्यवहार करना।
⇨सत्यए संयमए भक्तिए दया एवं दान से युक्त व्यवहार करना।
⇨मन एवं कर्म की शुद्धि करना।
⇨श्रमिकों एवं नौकरों के साथ उचित व्यवहार करना।
⇨अहिंसा का पालन करना।
⇨अल्प व्यय एवं अल्प संग्रह करना।

     2) निषेधात्मक तत्व

⇨उग्र व्यवहार नहीं करना चाहिए।
⇨निष्ठुर नहीं होना चाहिए।
⇨क्रोध नहीं करना चाहिए।
⇨घमण्ड नहीं करना चाहिए।
⇨ईष्या नहीं रखनी चाहिए।

अशोक ने समस्त निषेधों के लिए असिनव शब्द का प्रयोग किया है जिसका अर्थ है पाप। अशोक ने इसके प्रचार प्रसार के लिए अभिलेख खुदवाएए धर्मयात्राएएं कीए धर्म महामात्रों की नियुक्ति कीए धम्म मंडल की व्यवस्था की और अंहिसा को राजनीति का मुख्य आधार बनाया।

Dr. Nasir Hussain

डाॅ मनोज दाधीचष्

     सहायक आचार्यए;इतिहास विभागद्ध
     पेसिफिक सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय